Sunday, September 26, 2010

कुछ यादें, कुछ सीख




छात्र संघ चुनाव लड़ने कि न केवल इच्छा थी बल्कि तैयारी भी थी क्यूंकि कुछ ज्यादा ही सुना था दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों के विषय में कि यही चुनाव आगे आने वाली सरकार कि तस्वीर साफ़ करते है. लेकिन जब मैने यहाँ के चुनावों का रवैया देखा तो दंग रह गया, सिर्फ एक उम्मीदवार को जितने के लिए यहाँ लाखों रुपये पानी कि तरह बहाए जा रहे थे, और दूसरी तरफ कॉलेज या छात्र उन्नति के नाम पर धेला भी नहीं, टीस सी उठी दिल में कि गोली मार दूँ ऐसे युवा नेताओं को जो अभी से ही सिर्फ कुर्सी के बारे में सोचते है...........
इसलिए इस चुनावी गंदगी से मै दूर ही रहा,लेकिन ये क्या चुनावों के बाद मेरा कॉलेज शमशान लग रहा था  बिल्कुल सूनसान जहाँ सिर्फ ढांचा था,
और इस मुर्दाघर कि मुर्दानी चुप्पी में सिर्फ इक्का-दुक्का चेहरे ही नज़र आते थे और जो आते थे वो भी कैंटीन में टाइम पास कर चले जाते थे.
इसलिए शायद किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था, भगवान शायद मुझसे कलम कि सेवा करवाना चाहता था इसलिए मेरा दाखिला पत्रकारिता के एक कॉलेज "मधुबाला"(पूरा नाम काफी बड़ा है ) में हुआ ....
और दाखिला मिलते ही मैने अपने दिल और दिमाग कि पेटी बाँध ली अब सिर्फ पढाई और नौकरी करनी है फालतू के सामाजिक पचड़ो में नहीं पड़ना है बस एक आम आदमी बनना है बाकी आम आदमियों कि तरह...............
और मैने किया भी वही कॉलेज के दो साल तक मै अपने ही वर्ष के पूरे साथियों के नाम तक नहीं जानता था, और दोस्ती के नाम पर गिनती के दोस्त थे.  उनमे से भी मै कुछ को टाइम पास मानता था.  
लेकिन अचानक से स्कूल वाली वही पुरानी कहानी फिर से रिप्ले हो रही थी, दुबारा सब कुछ छुटता सा दिखाई पड़ रहा था.  तीन साल पूरे होने को आये है और मै अब तक सिर्फ शक्लों से पहचानता हूँ अपने साथ के विद्यार्थियों को, लेकिन अब नाम भी याद कर रहा हूँ क्यूंकि अचानक से सब साथी दिल को छूने लगे है, अब तो ये हाल है कि जिनसे बात नहीं होती थी उन्हें भी देखकर अकस्मात ही चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है.
पता नहीं सच है या झूठ लेकिन सारे साथी शायद मुझे भाने लगे है इसलिए उन सब के लिए एक कविता लिख रहा हूँ जो अगले पोस्ट में डालूँगा.......................

कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
बीत जाने के बाद ये पल याद आयेंगे,
छिड़ेगी जब बाते पुरानी,
चेहरे वही,
सामने आ जायेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
याद कॉलेज के ये दिन बहुत आयेंगे,
ऋषि- करन कि वो बहसें,
पालीवाल कि वो टीचर से बहसें,
राजबर कि वो तैश भरी बहसे,
आशीष मागू के ये प्रश्न कैसे ,
कहाँ फिर हम सुन पाएंगे,
कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू  छलक जायेंगे  

अभी पेश है कुछ पंक्तिया जो अभी लिखी गयी है 
बाकी बाद में 

मोहब्बत की महक

मैने आजतक कभी मोहब्बत- नफरत जैसी अनुभव करने वाली बातों को शब्दों का रूप नहीं दिया है लेकिन कोशिश कर रहा हूँ और सुना है कि "कोशिश करने वालों कि कभी हार नहीं होती" इसलिए आशा करता हूँ मुझे टिप्पड़ियों के तौर पर गलतिया बताई जाएँगी.........................................

तेरी महक से महकता रहेगा उम्रभर ये दिल,
भले ही न कर पाए इजहारे इश्क उम्रभर ये दिल,
लेकिन.............
भूले न भुला पायेगा तुझको ये दिल,
दर्द ये मै लेके जीता रहूँगा,
मगर इकरारे मोहब्बत न कर सकूँगा,
बस एक खुदा से फ़रियाद करूँगा ---------------------------
दिल उसको चाहता है तुझसे भी ज्यादा,
वो खुश रहे 'दिल' ये दुआ देके जाता.....................................................

Wednesday, September 1, 2010

कुछ यादें , कुछ सीख

कुछ  यादें , कुछ सीख

यादों पर पड़ी परत हटाने की कोशिश कर रहा हूँ ,
धूल जमी उनपे उड़ाने की कोशिश कर रहा  हूँ ,
यादें ही वो साथी है ,
जो सूने पन में हमराही है  ,
जिन यादों का जिक्र ब्लॉग पर किया था पहले ,
उसके आगे का जिक्र ,
यहाँ  पर  करता  हूँ ………………………




अब  मेरी  दसवी  बोर्ड  की  परीक्षाएं  ख़त्म  हो  चुकी  है  , बिल्कुल  तन्हा बैठा  हुआ  हूँ  घर  पे  ,पुरानी  यादों  की  सोच  में  तभी  कागज़  कलम  पर  नज़र  जाती   है  तो   सोचता  हूँ  की  कुछ  लिख  लिया  जाये  , लेकिन  लिखने  के  नाम  पर  सिर्फ  “तन्हा  उदास  जिन्दगी  की  तलाश  में ”. और  मेरी  वो  तलाश  पूरी  हुई  ऑगस्ट  २००८  में  जाकर,  क्यूंकि  तब  मेरा  कॉलेज  में  दाखिला  हो  गया  था  , सोचा  चलो  खाली  बैठकर  बोर  होने  से  तो  अच्छा  है  है  की  कॉलेज  जाऊ .
कॉलेज  का  पहला  दिन  दिल्ली यूनिवर्सिटी पर  छाप छोड़ने  के  इरादे  से  निकल  चुके  हमारे  कदम  अरबिंदो  कॉलेज  की  तरफ  दिल  में  थोडा  सा  खौफ लिए  रैगिंग   का, और जाहिर सी बात है हर किसी के दिल में थोडा बहुत डर तो रहता है.
लेकिन कॉलेज पहुंचते ही डर रफूचक्कर हो चुका था. क्यूंकि आधा कॉलेज भरा पड़ा था जान-पहचान वाले बंधुओं से जो मेरे से पहले कॉलेज की दुनिया देख चुके थे परख चुके थे, फिर क्या था सारी दुखद बिछड़ने की याद को पीछे छोड़ मेरे कदम बढ़ चुके थे, नई दुनिया की तरफ जहाँ सिर्फ मस्ती थी मौज थी और उस मस्ती का हिस्सा में भी था.मैने भी पुराने विद्यार्थियों के साथ मिल के फ़च्चों की जम कर खिचाई की. तब तक चुनावों का दौर शुरू हो चुका था, और हम भी लग गए चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के चक्कर में.