Saturday, October 2, 2010

कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,

  कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
जब कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
बीते हुए चेहेरे नज़र आयेंगे,
मोनू कि वो बातें बचकानी,
परनीत कि बच्चे सी शैतानी,
पुनीत की एक्टिंग का ना कोई सानी,
जय(दीक्षांत),वीरू(अमित) की वो दोस्ती पुरानी,
कहाँ देख पाएंगे,
कॉलेज के ये दिन बहुत याद आयेंगे,
आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
दीक्षांत से गवैये,
अमित के आशिकी रवैये,
भावुक के कश्मीरी चर्चे ,
आदित्य के नक़ल के पर्चे,
ऐसे शख्स न कभी मिल पाएंगे,
याद आते ही -
आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
कॉलेज के ये दिन बहुत याद आयेंगे,
गौतम के आइयासी अंदाज़,
ऋषि के आशिकी मिजाज़,
चांदनी के चालू अंदाज़,
शिवानी नखरे मिजाज़,
कहाँ अब इन अंदाजों- मिज़ाज़ों को देख पाएंगे,
ये कॉलेज के दिन बहुत याद आयेंगे,
योगेश अरोरा की मसखरी,
करण की भोले भक्ति,
चक्षु- गौरव की मस्ती,
जय की दोस्ती सच्ची,
बल्ली की देश भक्ति,
कब अब ये दोस्ती,भक्ति,मस्ती देख पाएंगे,
कॉलेज के ये दिन बहुत याद आयेंगे,
रोहित अरोरा सी सीखने की ललक,
गजनी- मांडव की साथ देखने को मिलती झलक,
अंतिल के झटके लगते, हिलते पलक,
गोरव राव की फोटोग्राफी पहुंचे आसमां तलक,
कब फिर ऐसे ललक की झलक देख पाएंगे ,
ये कॉलेज के दिन बहुत याद आयेंगे,
अनु-राठी कब बनेगी लड़की,
बच्ची वो युक्ति कब बड़ी होगी,
महक की वो हंसी फिर कब दिखेगी,
तुहिना फिर कब समझदारी भरी बाते करेगी,
इस दल की नयन के बारे में कुछ पता नहीं
तो कलम क्या कहेगी,
मयंक के बालों की कटाई कब होगी,
कुछ दिन बाद ये प्रश्न अनुत्तरित रह जायेंगे,
कॉलेज के ये दिन बहुत याद आयेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
कुंडू से मजे लेना ,
उसका हंसके टाल देना ,
नैना का हर वक्त चिल्लाना,
उसके साथ वाली लड़की का नाम याद न आना,
चोना का ड्रम बजाना,
बाकियों का फिर से नाम याद न आना,
लेकिन सबको शक्लों से पहचानना ,
अब कुछ दिन ही इन्हें सुन पाएंगे
उम्रभर पहचान पाएंगे,
कॉलेज के ये दिन बहुत याद आयेंगे,
क्या आप कभी इन्हें भुला पाएंगे,
भुलाने की कोशिश में दिमाग पर छाएंगे,
आँखों के रस्ते गालों को सहलायेंगे,
ये आंसु न चाहकर भी आँखों से छलक जायेंगे,
पता ही न था सब दिल में यूँ उतर जायेंगे,
वो शिमला ट्रिप के बाद -
ऍम.बी.सेम. परिवार का हिस्सा बन जायेंगे,
उन खट्टी-मीठी नोकझोंकों का प्यार कहाँ पाएंगे,
बचे हुए दिन है यूँ ही गुज़र जायेंगे,
कुछ किसी को भूल जायेंगे,
कुछ जबरदस्ती भुलायेंगे,
लेकिन हम -------------------
इन यादों को कलम से सहलायेंगे,
सबकी याद में जस्न मनाएंगे,
जाम छलकाएंगे,
लेकिन इसके बावजूद ---------------------
कॉलेज के ये दिन जब याद आएंगे,
खुद-ब-खुद आँखों से आंसु ढलक जायेंगे,
कॉलेज के ये पाल बहुत याद आयेंगे,
हंसाएंगे,
रुलायेंगे,
और------------
यही पल याद बनके मिलवायेंगे..........

इस कविता में मै खुद शामिल नहीं हूँ, ऊपरी तौर पर किन्तु दिल से सब दोस्तों के साथ हूँ,
आशा करता हूँ कॉलेज के बाद भी आप सब दोस्त आपस में यूँ ही मिलते रहोगे, मुझे छोडके क्यूंकि................
मेरी मुझको खबर नहीं,
कल क्या हो मुझको पता नहीं,
इसलिए ---------
खुद के लिए लिखते कुछ बना नहीं ...........................
इसलिए -----------------
झूठे वादे न कर पाउँगा ,
लेखक हूँ, फक्कड़ हूँ , घुमक्कड़ हूँ ,
दुनिया बहुत बड़ी है यारो ,
कहीं भटकता मिल जाऊंगा
 
   

Sunday, September 26, 2010

कुछ यादें, कुछ सीख




छात्र संघ चुनाव लड़ने कि न केवल इच्छा थी बल्कि तैयारी भी थी क्यूंकि कुछ ज्यादा ही सुना था दिल्ली विश्वविद्यालय के चुनावों के विषय में कि यही चुनाव आगे आने वाली सरकार कि तस्वीर साफ़ करते है. लेकिन जब मैने यहाँ के चुनावों का रवैया देखा तो दंग रह गया, सिर्फ एक उम्मीदवार को जितने के लिए यहाँ लाखों रुपये पानी कि तरह बहाए जा रहे थे, और दूसरी तरफ कॉलेज या छात्र उन्नति के नाम पर धेला भी नहीं, टीस सी उठी दिल में कि गोली मार दूँ ऐसे युवा नेताओं को जो अभी से ही सिर्फ कुर्सी के बारे में सोचते है...........
इसलिए इस चुनावी गंदगी से मै दूर ही रहा,लेकिन ये क्या चुनावों के बाद मेरा कॉलेज शमशान लग रहा था  बिल्कुल सूनसान जहाँ सिर्फ ढांचा था,
और इस मुर्दाघर कि मुर्दानी चुप्पी में सिर्फ इक्का-दुक्का चेहरे ही नज़र आते थे और जो आते थे वो भी कैंटीन में टाइम पास कर चले जाते थे.
इसलिए शायद किस्मत ने मेरे लिए कुछ और ही सोच रखा था, भगवान शायद मुझसे कलम कि सेवा करवाना चाहता था इसलिए मेरा दाखिला पत्रकारिता के एक कॉलेज "मधुबाला"(पूरा नाम काफी बड़ा है ) में हुआ ....
और दाखिला मिलते ही मैने अपने दिल और दिमाग कि पेटी बाँध ली अब सिर्फ पढाई और नौकरी करनी है फालतू के सामाजिक पचड़ो में नहीं पड़ना है बस एक आम आदमी बनना है बाकी आम आदमियों कि तरह...............
और मैने किया भी वही कॉलेज के दो साल तक मै अपने ही वर्ष के पूरे साथियों के नाम तक नहीं जानता था, और दोस्ती के नाम पर गिनती के दोस्त थे.  उनमे से भी मै कुछ को टाइम पास मानता था.  
लेकिन अचानक से स्कूल वाली वही पुरानी कहानी फिर से रिप्ले हो रही थी, दुबारा सब कुछ छुटता सा दिखाई पड़ रहा था.  तीन साल पूरे होने को आये है और मै अब तक सिर्फ शक्लों से पहचानता हूँ अपने साथ के विद्यार्थियों को, लेकिन अब नाम भी याद कर रहा हूँ क्यूंकि अचानक से सब साथी दिल को छूने लगे है, अब तो ये हाल है कि जिनसे बात नहीं होती थी उन्हें भी देखकर अकस्मात ही चेहरे पर मुस्कान खिल उठती है.
पता नहीं सच है या झूठ लेकिन सारे साथी शायद मुझे भाने लगे है इसलिए उन सब के लिए एक कविता लिख रहा हूँ जो अगले पोस्ट में डालूँगा.......................

कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
बीत जाने के बाद ये पल याद आयेंगे,
छिड़ेगी जब बाते पुरानी,
चेहरे वही,
सामने आ जायेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू छलक जायेंगे,
याद कॉलेज के ये दिन बहुत आयेंगे,
ऋषि- करन कि वो बहसें,
पालीवाल कि वो टीचर से बहसें,
राजबर कि वो तैश भरी बहसे,
आशीष मागू के ये प्रश्न कैसे ,
कहाँ फिर हम सुन पाएंगे,
कॉलेज के ये दिन याद आयेंगे,
न चाहकर भी आँखों से आंसू  छलक जायेंगे  

अभी पेश है कुछ पंक्तिया जो अभी लिखी गयी है 
बाकी बाद में 

मोहब्बत की महक

मैने आजतक कभी मोहब्बत- नफरत जैसी अनुभव करने वाली बातों को शब्दों का रूप नहीं दिया है लेकिन कोशिश कर रहा हूँ और सुना है कि "कोशिश करने वालों कि कभी हार नहीं होती" इसलिए आशा करता हूँ मुझे टिप्पड़ियों के तौर पर गलतिया बताई जाएँगी.........................................

तेरी महक से महकता रहेगा उम्रभर ये दिल,
भले ही न कर पाए इजहारे इश्क उम्रभर ये दिल,
लेकिन.............
भूले न भुला पायेगा तुझको ये दिल,
दर्द ये मै लेके जीता रहूँगा,
मगर इकरारे मोहब्बत न कर सकूँगा,
बस एक खुदा से फ़रियाद करूँगा ---------------------------
दिल उसको चाहता है तुझसे भी ज्यादा,
वो खुश रहे 'दिल' ये दुआ देके जाता.....................................................

Wednesday, September 1, 2010

कुछ यादें , कुछ सीख

कुछ  यादें , कुछ सीख

यादों पर पड़ी परत हटाने की कोशिश कर रहा हूँ ,
धूल जमी उनपे उड़ाने की कोशिश कर रहा  हूँ ,
यादें ही वो साथी है ,
जो सूने पन में हमराही है  ,
जिन यादों का जिक्र ब्लॉग पर किया था पहले ,
उसके आगे का जिक्र ,
यहाँ  पर  करता  हूँ ………………………




अब  मेरी  दसवी  बोर्ड  की  परीक्षाएं  ख़त्म  हो  चुकी  है  , बिल्कुल  तन्हा बैठा  हुआ  हूँ  घर  पे  ,पुरानी  यादों  की  सोच  में  तभी  कागज़  कलम  पर  नज़र  जाती   है  तो   सोचता  हूँ  की  कुछ  लिख  लिया  जाये  , लेकिन  लिखने  के  नाम  पर  सिर्फ  “तन्हा  उदास  जिन्दगी  की  तलाश  में ”. और  मेरी  वो  तलाश  पूरी  हुई  ऑगस्ट  २००८  में  जाकर,  क्यूंकि  तब  मेरा  कॉलेज  में  दाखिला  हो  गया  था  , सोचा  चलो  खाली  बैठकर  बोर  होने  से  तो  अच्छा  है  है  की  कॉलेज  जाऊ .
कॉलेज  का  पहला  दिन  दिल्ली यूनिवर्सिटी पर  छाप छोड़ने  के  इरादे  से  निकल  चुके  हमारे  कदम  अरबिंदो  कॉलेज  की  तरफ  दिल  में  थोडा  सा  खौफ लिए  रैगिंग   का, और जाहिर सी बात है हर किसी के दिल में थोडा बहुत डर तो रहता है.
लेकिन कॉलेज पहुंचते ही डर रफूचक्कर हो चुका था. क्यूंकि आधा कॉलेज भरा पड़ा था जान-पहचान वाले बंधुओं से जो मेरे से पहले कॉलेज की दुनिया देख चुके थे परख चुके थे, फिर क्या था सारी दुखद बिछड़ने की याद को पीछे छोड़ मेरे कदम बढ़ चुके थे, नई दुनिया की तरफ जहाँ सिर्फ मस्ती थी मौज थी और उस मस्ती का हिस्सा में भी था.मैने भी पुराने विद्यार्थियों के साथ मिल के फ़च्चों की जम कर खिचाई की. तब तक चुनावों का दौर शुरू हो चुका था, और हम भी लग गए चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के चक्कर में.

Sunday, August 29, 2010

कुछ यादें, कुछ सीख part 1



रात का दूसरा पहर ,बस दो पहर बाद ही ब्रह्म महूर्त हो जायेगा और सूर्यदेवता निकल आयेंगें . मुर्गे बांग इसलिए नहीं देंगे क्यूंकि शहरी परिवेश है . लेकिन मेरी आँखों में तो नींद ही नहीं , कुछ  आजीब सी बैचैनी है ,कभी छत  पर चड़कर टहलता हूँ, तो कभी किताबों के पन्ने पलटना हूँ लेकिन फिर भी नींद नहीं आ रही है.थक-हार कर में लगभग २ बजे के आस-पास बाहर सड़क पर घूमने निकल पड़ता हूँ, जहाँ चारो तरफ सन्नाटा बिछा पड़ा है, सड़क को देखते ही प्रतीत होता की यह तो मेरा ही प्रतिबिम्ब स्वरुप है ,बिलकुल सूनसान, बेजान,कोई रौनक नहीं. सब इसका साथ छोड़कर चले गयें है. क्यूंकि सबको आपने गंतव्य स्थान तक पहुँचाना है. 


          लेकिन मै इस सड़क से भी ज्यादा तकलीफ में हूँ, क्यूंकि सड़क को तो पता है की रात भर की ही तो बात है कल फिर से अपने रोजाना के हमसफ़रों के साथ मुलाकात होगी. लेकिन मेरी तो वो आस भी आज छूटती जा रही है.
दिल में एक अजीब सी कशिश है, तकलीफ है, दर्द है ,ऐसा तो कभी नहीं हुआ मेरे साथ. फिर क्यूँ? क्यों ऐसा लगता है मुझे की कल के बाद में बहुत कुछ खोने वाला हूँ.
उन्ही चीज़ों के खोने की तकलीफ के कारण आज मुझ जैसे कठोर हृदय वाले को भी तकलीफ हो रही है, यहाँ तक की आँखों मै आंसू तक छलक आये है.
और फिर अपने आप को सम्हाल के में सूर्य देवता के निकलने की प्रतीक्षा न करते हुए अपने दूसरे  घर यानी स्कूल जाने के लिए तैयार हो चूका था , अपनी माँ के लाए हुए नए कपड़े पहन कर. क्यूंकि आज मेरे स्कूली सफ़र का अंतिम दिन था. जब स्कूल पहुंचा तो देखता हूँ की पूरा स्कूल खली पड़ा है बिलकुल मेरे दिल की गहरी खाई की तरह जहाँ मेरे दिल का दर्द समां चूका है क्यूंकि किसी से में कुछ कह नहीं सकता क्या करूं हूँ ही ऐसा मै. पहले तो मै पुरे स्कूल में घूमता रहा फिर आकर अपने कमरे में बैठ गया जहाँ मैने बारवीं का पूरा सफ़र तय किया, जिस जगह मै बैठता था, वहीँ आकर मै बैठ गया, दिल को शांति सी मिली, और ऐसी शांति मिली की पता ही नहीं चला की कब मुझे नींद आ गयी. मेरे दोस्तों ने मुझे आकर जगाया और कहा देख बहर  चल के ग्यारवी की लड़कियां नाच रहीं है, उनके बहुत जोर देने पर में बाहर आया. बाहर आते ही मेरे से निचले दर्जे के सहपाठियों ने मुझे घेर लिया और अपनी  शुभकामनाओं से मेरी पूरी कमीज़ भर दी जिसे मैने आज भी सम्हाल कर रखा हुआ है .
लेकिन उस दिन उनकी वो हंसी ठिठोली भी मुझे जो कभी पसंद थी  मुझे अच्छी नहीं लग रही थी.
मै चुपचाप उनसे बचता हुआ, छुपता हुआ दुबारा अपने कमरे में आकर बैठ गया और निहारता रहा उन कुर्सियों को ,उस कमरे को जहाँ कभी हमारा शोर गूंजा करता था .उन सब जीवों को में आज अलविदा कह रहा था, उन्हें निहार रहा था , जो निर्जीव होते हुए भी मुझे जीवित लग रहीं थी, ऐसा प्रतीत हो रहा था मनो मुझे रोक रही हों.
मै यह सब सोच ही रहा था की इतने में मेरी बहि/acct. की मैडम रेखा जिनके एहसानों का क़र्ज़ में ताउम्र नहीं उतर सकता हूँ का कमरे में प्रवेश हुआ.
मुझे आज भी अच्छी तरह याद है की उन्होंने मुझसे पूछा "क्यों बेटा आज तो तुम्हारा यह आखिरी दिन है..........."मैने बात पूरी सुनने की कोशिश न करते हुए बात  बीच में काटते हुआ बोला "जी आप ही कहते थे की तुम्हारे जाने के बाद ही यह स्कूल सुधरेगा". मेरी बात के जवाब में उन्होंने सिर्फ इतना कहा "माँ-बाप को भी अपने नटखट और शैतान बच्चे ही अधिक  प्यारे होते है उनके न होने से सब कुछ सूना हो जाता है" इतना सुनना था की मेरी आँखें भर आयीं.
और मै  किसी को बताये बिना ही वापस घर लौट आया क्योंकि वहां रुकने की मेरी इच्छा ही नहीं हो रही थी जहाँ दर्द हर किसी के दिल में था और सब हंस रहे थे,
और मुझे न झूठा हँसना पसंद है न रोना. उस दिन के बाद मैने कभी उस जगह की ओर रुख नहीं किया क्यूंकि वहां  पहुचते ही पुरानी  यादें ताज़ा हो जाती लगता है मनो  कल की ही बात हो, स्कूल के बाहर हम सारे लड़के बैठ के सर्दियों में चाय और स्कूल कैंटीन में बैठ साथ की लड़कियों को छेड़ रहे हो और फिर प्रिंसिपल के डर से इधर उधर भाग रहें हो. अब तो ऐसा लगता  है की स्कूल के साथ-साथ बचपन भी कहीं विश्राम पर चला गया है.
लेकिन स्कूल छोड़ने के गम को तो  मैने यह सोच कर भुला दिया की "परिवर्तन ही जिंदिगी का नियम है" लेकिन स्कूल का जो दिल से जुड़ाव है उसका क्या करे उसे तो आज तक नहीं भुला पाया हूँ इसलिए ही सायद हर साल ५ सितम्बर को स्कूल जाता हूँ.और इन यादों को मै ही क्या कोई भी नहीं  भुला पाया होगा. मेरे लिए तो आज भी स्कूल के दिन सुहानी यादें है जो दिल के किसी कोने में पड़ी धुल खा रही है.  (उन्ही यादों पर से आज कुछ धूल झाड़ने की कोशिश कर रहा हूँ)    

Friday, August 27, 2010

स्वागतम,
आज कॉलेज में ब्लॉग के बारे में सुना
और सबसे बड़ी बात ये एक ऐसी जगह है जहाँ मेरे विचार से हम जैसे भावी लेखकों कि आवश्यकता है
और दूसरी बात ऐसा करने से हम परिपक्व होंगे लेखन में