कुछ यादें , कुछ सीख
यादों पर पड़ी परत हटाने की कोशिश कर रहा हूँ ,
धूल जमी उनपे उड़ाने की कोशिश कर रहा हूँ ,
यादें ही वो साथी है ,
जो सूने पन में हमराही है ,
जिन यादों का जिक्र ब्लॉग पर किया था पहले ,
उसके आगे का जिक्र ,
यहाँ पर करता हूँ ………………………
अब मेरी दसवी बोर्ड की परीक्षाएं ख़त्म हो चुकी है , बिल्कुल तन्हा बैठा हुआ हूँ घर पे ,पुरानी यादों की सोच में तभी कागज़ कलम पर नज़र जाती है तो सोचता हूँ की कुछ लिख लिया जाये , लेकिन लिखने के नाम पर सिर्फ “तन्हा उदास जिन्दगी की तलाश में ”. और मेरी वो तलाश पूरी हुई ऑगस्ट २००८ में जाकर, क्यूंकि तब मेरा कॉलेज में दाखिला हो गया था , सोचा चलो खाली बैठकर बोर होने से तो अच्छा है है की कॉलेज जाऊ .
कॉलेज का पहला दिन लेकिन कॉलेज पहुंचते ही डर रफूचक्कर हो चुका था. क्यूंकि आधा कॉलेज भरा पड़ा था जान-पहचान वाले बंधुओं से जो मेरे से पहले कॉलेज की दुनिया देख चुके थे परख चुके थे, फिर क्या था सारी दुखद बिछड़ने की याद को पीछे छोड़ मेरे कदम बढ़ चुके थे, नई दुनिया की तरफ जहाँ सिर्फ मस्ती थी मौज थी और उस मस्ती का हिस्सा में भी था.मैने भी पुराने विद्यार्थियों के साथ मिल के फ़च्चों की जम कर खिचाई की. तब तक चुनावों का दौर शुरू हो चुका था, और हम भी लग गए चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने के चक्कर में.
Interesting thoughts. Keep it up.
ReplyDeletebus yun hi shabdon main dil ki baaten karte rahiye.
ReplyDeleteकॉलेज के दिन भी क्या दिन होते हैं। अपने भी याद आ गए। यूं ही लिखते रहो....
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